ईमानदारी की जीत


Imaandari ki jeet-ईमानदारी की जीत


"रामू, उठ जा। स्कूल में देरी से पहुंचा तो मास्टरजी से डांट खानी पड़ेगी। ” डांट का नाम सुनते हो रामू ने फ़ौरन बिस्तर छोड़ दिया और स्कूल जाने के तैयारी में लग गया। उधर माँ ने गरमा गर्म परांठा और दूध उसके आगे रख दिया, जिसे उसने किताबें सँभालते हुए ही ख़तम किया। मन ही मन माँ को धन्यवाद देता पूरे 7 बजे स्कूल पहुंचा तो बच गया। 

पिता की अचानक मृत्यु के बाद एक छोटे से कमरे में अपने माँ के साथ रहता था। पिताजी एक सुनार की दुकान पर काम करते थे। उनकी मृत्यु के बाद सुनार ने वह नौकरी माँ को दे दी। माँ की पगार से घर का और रामू की पढाई का खर्च आराम से चलता था। 

दोपहर 2 बजे छुट्टी होते ही रामू दौड़ कर सुनार की दुकान पर पहुँच जाता। माँ-बेटे के घर के हालात देखते हुए उस सुनार ने रामू को भी अपने यहाँ काम पर लगा लिया था। लेकिन उसे हमेशा ही स्कूल जाने के लिए प्रेरित करते थे। रामू को छूट थी कि वह दुकान पर 2 बजे बाद ही आता। 

माँ हमेशा रामू को सचाई और ईमानदारी की कहानियां सुनाती थी। उसको जीवन में आगे बढ़ने के लिए हमेशा सच और न्याय का सहारा लेने की शिक्षा देती रहती थी। कभी किसी को धोखा देना तो वह सबसे बड़ा पाप समझती थी। 

एक दिन शाम को दुकान बंद करते हुए सुनार ने एक बक्सा रामू को दिया और बोले ” मैं कहीं जा रहा हुँ। इसमें कीमती हीरे-जेवरात हैं, संभाल के लेजाना और मेरे घर पर छोड़ देना। ” 

रामू ने बक्सा लिया और चल पड़ा सुनार के घर की तरफ। रास्ते में उस बक्सा को खोल कर देखने का विचार भी आया उसके मन में, लेकिन फिर माँ के पढ़ाये ईमानदारी के सब पाठ उसे याद आ गए।उसने बिना खोले ही उस बक्से को सुनार के घर छोड़ दिया। 

अगले दिन दोपहर को जब वह दुकान पर पहुंचा तो सुनार ने उसे अपने पास बुलाया और कहा

” रामू, कल जो हीरे-जेवरात मैंने तुम्हे दिए थे, उन्हें मेरे घर पहुंचा कर तुमने अपनी ईमानदारी को साबित कर दिया है। तुम रामू नहीं एक खरा सोना हो। ”

और फिर सुनार ने उसे तरक्की देते हुए अपनी दुकान का मैनेजर बना दिया। 

नैतिक - ईमानदारी और सच्चाई पर चलने वाले व्यक्ति के सफल भविष्य को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।